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Wednesday, January 14, 2009

गूगल और चाय की केतली

द्वारा बिष्ट

रविवार जनवरी 11, 2009 को द सन्डे टाईम्स (यू के) ने एक लेख प्रकाशित किया | यह लेख इस नई खोज से सम्बंधित था:

गूगल की प्रत्येक सर्च वातावरण में 7 ग्राम कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ती है, यह मात्रा एक चाय की केतली को गरम करने से निकलने वाली कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा की आधी है |

लेख के अनुसार उपरोक्त खोज, अलेक्स विजनर- ग्रोस नामक एक भौतिकविद् के शोध से प्राप्त हुई हैं |

इस लेख के प्रकाशित होने के कुछ ही देर बाद; सम्पूर्ण विश्व की मीडिया ने मिली जुली सी प्रतिक्रिया दी | कुछ ने इस लेख को अपने पाठकों और दर्शकों के सम्मुख एक आश्चर्य के पुट के साथ परोसा तो कुछ ने(जिनकी संख्या काफी कम है) ने इस लेख की इस बात के लिए आलोचन की कि इसमे कही गई बात विज्ञान कि कसौटी पर परखी नहीं गई है | टेकक्रंच (एक तकनीक ब्लॉग) ने इस लेख की घोर शब्दों में आलोचना की |

गूगल ने भी, इस दावे को प्रभावी तरीके से रद्द कर दिया |


लेख में ग्रोस महोदय(भौतिकविद्) के हवाले से क्या कहा गया:

लेख में कहा गया कि अलेक्स विजनर ग्रोस ने कहा ," दो गूगल सर्च करने पर उतनी ही ऊर्जा खर्च होती है जितनी की एक कप चाय बनाने में खर्च होती है " |

परन्तु बाद में ऐसा ज्ञात हुआ की 'गूगल और चाय की केतली' दावा उक्त भौतिकविद् के शोध के नतीजों से नहीं प्राप्त हुआ | दरअसल इस दावे का कोई अन्य स्रोत है |

भौतिकविद् महोदय ने अपनी सफाई में क्या कहा:

-- उन्होनें कहा कि वह कभी भी किसी भी माप को चाय से नहीं जोड़ते; अगर उन्हें ऐसी जरूरत पड़े तो वह काफ़ी से तुलना करेंगे न कि चाय से (बात में तो दम है !) |

-- उनके शोध से आए नतीजों का गूगल, कम्पनी, से कोई सम्बन्ध नहीं है | उनके नतीजे का सम्बन्ध सामान्यीकृत तथ्यों से है , जैसे , जब कोई उपयोगकर्त्ता एक वेबपेज देखता है तो पर्सनल कंप्यूटर के द्वारा उत्पन्न की गई कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा आदि |

-- 7 ग्राम प्रति सर्च की संख्या किसी अन्य स्रोत से आई | यद्यपि किस स्रोत से ; यह वह नहीं जानता |

-- उसने सामान्य वक्तव्य अवश्य दिए जैसे " एक गूगल सर्च निश्चित रूप से पर्यावरण पर प्रभाव डालती है " और " गूगल सारे विश्व में विशाल डाटा केन्द्र चलाता है जो भरी मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं |

--लेख भ्रामक है और ज्यों ही उसे इस बात का पता चला त्यों ही उसने द टाईम्स को संपर्क किया | समाचार पत्र ने उसे आश्वासन दिया कि त्रुटि को शीघ्र ही सुधार लिया जाएगा |

द टाईम्स ने अपने बचाव में क्या कहा:

-- समाचार पत्र के कहा कि यद्यपि अब यह पता लग गया है कि केतली माप का स्रोत रोल्फ़ कर्स्टन के द्वारा वर्ष 2007 में लिखा गया एक ब्लॉग पोस्ट है ; समाचार पत्र ने यह सोचा कि बहस का विषय बना दावा भौतिकविद् के शोध से प्राप्त हुआ है |

--अपनी छवि को बचाने के लिए, समाचार पत्र ने , स्रोत की जानकारी सार्वजनिक कर दी |



...और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि टूटी सुधार लेख किसने लिखा -- भौतिकविद् महोदय ने |

तो अंत में, समाचार पत्र और भौतिकविद् दोनों ही गलती में निकले | द टाईम्स का दोष यह है कि उसने सनसनी को सूचना कि प्रमाणिकता से अधिक तरजीह दी ; और भौतिकविद् इसलिए क्योंकि उसने एक ऐसे दावे को शब्द दिए जो विज्ञान के द्वारा सिद्ध नहीं है |

क्या दुनिया अपना संतुलन खो रही है !

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